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सच बोलना इतना मुश्किल क्यों?
साल 2018 में जब मैं छात्र था, मेरी यूनिवर्सिटी में मुझे "अपने राज्य की समस्याएँ और उनके समाधान" विषय पर बोलने का मौका मिला। मैंने जैसे ही कहा, "बिहार एक पिछड़ा राज्य है...", कुछ बिहार के ही छात्रों ने हूटिंग शुरू कर दी और मुझे अपनी बात रोकनी पड़ी। यह अनुभव मेरे लिए सिर्फ़ एक व्यक्तिगत असहज स्थिति नहीं थी, बल्कि इसने एक बड़े सामाजिक रवैये को उजागर किया—हम अपनी वास्तविकता से भागते क्यों हैं? क्या किसी समस्या को पहचानकर उस पर बात करना गलत है? अगर हम सच्चाई से मुँह मोड़ लेंगे, तो बदलाव की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? इस घटना ने दिखाया कि हमारे समाज में आलोचना को स्वीकारने की प्रवृत्ति बेहद कमज़ोर है। लोकतंत्र में विचारों का आदान-प्रदान बेहद ज़रूरी है, लेकिन जब तर्कों की जगह भावनात्मक प्रतिक्रियाएँ ले लेती हैं, तो संवाद की गुंजाइश ही खत्म हो जाती है। अगर बिहार की चुनौतियों पर चर्चा करना ही अस्वीकार्य हो जाए, तो फिर उन समस्याओं का हल कैसे निकलेगा? किसी भी राज्य या समाज की तरक्की के लिए आत्ममूल्यांकन ज़रूरी होता है। यह स्वीकारना कि समस्याएँ मौजूद हैं, कोई शर्म की बात नहीं, बल्कि बदलाव की दिशा में पहला कदम है। लेकिन जब सुधार के प्रयासों को हूटिंग और असहमति के नाम पर रोका जाने लगे, तो यह हमारे सोचने-समझने की क्षमता पर ही सवाल खड़ा कर देता है। हैरानी की बात यह है कि यह घटना एक केंद्रीय विश्वविद्यालय में घटी—एक ऐसा स्थान जहाँ खुले विचारों का आदान-प्रदान होना चाहिए। शिक्षा का मकसद यही होता है कि हम तर्कशील बनें, आलोचनात्मक सोच विकसित करें और असहमति को भी तर्क के साथ जवाब दें। लेकिन जब पढ़े-लिखे युवा ही असहिष्णुता दिखाने लगें, तो यह शिक्षा व्यवस्था की भी विफलता है। एक परिपक्व समाज वही होता है जो अपनी कमज़ोरियों को पहचानकर उन्हें सुधारने की कोशिश करे, न कि आलोचना से बचने के लिए उसे दबाने का प्रयास करे। इस पूरी घटना ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या हम सच का सामना करने के लिए तैयार हैं? क्या हम बदलाव की प्रक्रिया में शामिल होना चाहते हैं, या सिर्फ़ वही सुनना चाहते हैं जो हमें अच्छा लगे? समस्याओं से मुँह मोड़ना आसान है, लेकिन उन्हें हल करने की हिम्मत कितनों में है? बिहार या किसी भी राज्य का भविष्य तब ही उज्जवल हो सकता है जब हम अपनी कमियों को स्वीकार कर, उन्हें सुधारने की दिशा में कदम बढ़ाएँ। #सोचनेवालीबात #बदलावज़रूरीहै #स्वीकारेंऔरसुधारें #सच्चाईसेडरक्यों4
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