Community Information
-
A Sharp Thought Provoking Poem by me on today's hinduism
This is a highly sharp powerful critique of superficial religiosity, hypocrisy, and the surface level performative aspects of faith without any actual self reading that has become our standard in society. This is written with 0 intention to offend any other sampradaya - it's written by me with a vaishnav mindset though I am a smarta. It may seem offensive to some Please let me know what do you think about it : Reader Descretion regarding societal triggers are advised. ।0। पूरी हुई प्राण प्रतिष्ठा , अनिवार्य & आलौकिक हो चहुओर भारत में विकास , धार्मिक & भौतिक आइए करते हैं वो वार्ता , जो हैं अब जरूरी हैं यह कुछ पहलु .. जिनके बिना यह जनवरी की दिवाली हैं अधूरी ।0। बात हैं बस कुछ साल पहले की , कुछ चुभने वाले सवालो की ।1। नही सुना था मैंने नाम कभी वैष्णव जैन या शहीद कोठारी बंधु का , नही जानता की मैं है कोई राम लला बैठा तम्बू का नहीं जानता रामायण या ना रामचरित्र मानस पढ़ी लोगो में मुँह खोल सकू बस उतनी यूट्यूब वीडियोस देखि अभी अभी इतना नही सोचता मैं बिन बारी & ज्ञान बोलता मैं जब नहीं जोड़ पाउ संवाद में कुछ भी गहरा & मूल्यवान , ऊँची आवाज कर ले आता हूँ बीच में भगवान अनुसरण नहीं सिर्फ प्रचार प्रसारण करता हूं , आज भगवा गमछा डाल कर राम भक्त कहलाता हूं ।1। ।2। मैं नहीं जानता 33 करोड़ या कोटि , न करता जाप पाठ मैं, न जानू वैदिक पद्धति क्या होती, ना पढ़ता कोई ग्रंथ मैं , भूल जाओ पुराण गीता वेद मैं न जानू पंथ धर्म के , क्या हैं वर्ण & जाती का भेद इतना नही सोचता मैं, बिन बारी & ज्ञान बोलता मैं समाज में आदर बना रहे प्रोफाइल पिक्चर बदलकर .. स्टेटस शेयर कर देता हूं कभी कभी बिना जाने मर्म बस कॉपी पेस्ट कर देता हूं आज भगवा गमछा डाल कर राम भक्त कहलाता हूं ।2। ।3। जीवित हूं इस क्षण मैं , न जाने कितने पूर्वजों का बहा रक्त मैं तो हूं कुल का चिराग मैं तो नवयुग की मोह माया में आसक्त ना जानता में उनकी कहानी कहां लुप्त हुई उनकी वाणी ना जानू मैं पूर्वजों के नाम ... मुझे भला उनसे क्या काम ? बेचकर पुश्तैनी घर खेत ... मैं करता हूं भोजन हराम ।। इतना नही सोचता मैं ... बिन बारी & ज्ञान बोलता मैं कभी कभी पी खीर रोटी कोवे & कुत्ते को खिला देता हूं आज भगवा गमछा डाल कर राम भक्त कहलाता हूं ।3। ।4। अमृत काल का युवा हूं मैं देखी नही सुबह सालो से ... रात भर शहर की मस्ती में मदमस्त मैं करता हूंगा रोज अन्न व्यर्थ मैं कमाता भी तो हूं अर्थ, कर्मठ मैं.. स्वतंत्र मन मोला, मार लेता हूं किसिका हक मैं इतना नही सोचता मैं बिन बारी & ज्ञान बोलता मैं भंडारे में 101 देकर मैं भी दानी कहलाता हूं आज भगवा गमछा डालकर राम भक्त कहलाता हूं |4| ।5। शिक्षा & युक्ति से सम्पन्न मैं मिलता दुनिया से हर दिन मैं .. रखूं हफ्ते में व्रत हर बार , बिना तिलक के नही खोलता घर का द्वार , गाड़ी में हमेशा भजन ही चलाता हूं पर हर 5 मिनिट में , मैं अपनी नीचता दिखाता हूं राम नाम 2 मिनिट लेकर, मैं दिन भर मां बहन की गाली सबपर बरसाता हूं सम्मान महिला का करता पूरा हूं , पर रंगीन आइटम सॉन्ग के बिना कोई भी उत्सव अवसर नहीं मनाता हूं ।। इतना नही सोचता मैं, बिन बारी & ज्ञान बोलता मैं नवरात्रि में फलाहारी पुड़ी पकोड़ी वाला व्रत कर लेता हूं आज भगवा गमछा डाल कर मैं राम भक्त कहलाता हूं ।5। ।6। मैं हूं पशु प्रेमी , मैं हर कुत्ता सहलाता हूं गौ माता को चारा डालकर सामने शीश झुकाता हूं फिर सालभर मैं उनके दोस्त को तल कर चबाता हूं मैं समाज में आदरणीय हूं , मैं सबको उनका काम सिखाता हूं , आज बस थोड़ा बोल कर पूरा टुन्न हो जाता हूं ।। इतना नही सोचता मैं बिन बारी & ज्ञान बोलता मैं पूरी निष्ठा से हर मंगल & शनि, मंदिर होयाता हूं आज भगवा गमछा डालकर राम भक्त कहलाता हूं ।6। ।7। ना जानता कुल देवता को, ना देखा कुलदेवी का धाम आधा टूटा सड़ रहा कही ... कीचड़ कचरा कीड़े & मकड़ी सब वही बोल दूंगा आए थे वहां वोही शांतिदूत रजाई ओढ़कर हीटर सेकरा, सदियों से नहीं आई उस गर्भगृह में कोई धूप इतना नही सोचता मैं बिन बारी & ज्ञान बोलता मैं खुद के नाम की ईंट मैं मंदिर में लगाता हूं , डंका समाज में बजा कर , मैं आदरणीय बन जाता हूं आज भगवा गमछा डालकर राम भक्त कहलाता हूं ।7। ।8। शक्तिपीठ, ज्योतिर्लिंग या वैष्णोदेवी, तिरुपति या स्वयं राम के ईश सब में हुई बिन मंदिर प्रतिष्ठा तो क्या नही हैं यह तीर्थ ? क्या झूंटी मेरी निष्ठा ? दशकों से कहा थे ज्ञानी जब कोर्ट & गलियों में बंट रहा था धर्म निरपेक्ष आशीष ? अभी ही हुआ आत्म बोध उनको जिनके पद हैं सर्वा शीर्ष ?? इतना नही सोचता मैं बिन बारी ज्ञान बोलता मैं ढल जाए जो हर लहर में सत्ता के लिए , बिक जाए कुछ भीगे आश्रम के लिए उनको महान संत मैं कहलाता हूं आज भगवा गमछा डालकर राम भक्त कहलाता हूं ।8। ।9। जो नहीं समझा उसको रीति रिवाज कहलाता हूं , जो पूछें सवाल, उसको तर्क शास्त्री कहकर चुप बैठाता हूं । सिखाते थे समाज को सर्व विद्या जो , आज यज्ञ & स्वरक्षा भी असमर्थ यही भारत का सबसे बड़ा अनर्थ ।। यदि आत्म मंथन कराएं , शब्दकोश की हैं तभी उपयोगिता यदि चुभे ये शब्द आपको, तभी मिलेगी मुझें संयोगिता यदि दिखा सके दर्पण, तोही सफल होती हैं कविता ।। इतना नही जानता मैं इतना नही पहचानता मैं ऐसे टूटे हुई शब्दो से ही खुश होजाता हूं सो मैं रहा हूं, परन्तु प्रतिदिन आरती & घंटे से मैं भगवान को जगाता हूं ।। यूं ही नही में सनातनी बन जाता हूं आज भगवा गमछा डालकर मैं राम भक्त कहलाता हूं । मैं राम भक्त कहलाता हूं ।।4
© 2025 Indiareply.com. All rights reserved.