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Is it really a land law with this much loopholes?
जब हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और गढ़वाल-कुमाऊं के हर जिले में नगर पालिका क्षेत्रों को भू-कानून के दायरे से बाहर करना था, जब किसी भी गैर-पहाड़ी को "उद्यम" लगाने के नाम पर भूमि बेचने का रास्ता खुला छोड़ना था, तो इसे भूमि संरक्षण कानून कहने का क्या औचित्य रह जाता है? यह संरक्षण है या योजनाबद्ध लूट? एक ओर हमारे पूर्वजों की धरोहर है, जिन्हें मिट्टी से अधिक पवित्र मानते थे, और दूसरी ओर वह व्यवस्था जो अपनी ही माटी को नीलाम करने पर तुली है। क्या यही न्याय है? क्या यही पहाड़ के अस्तित्व की कीमत है?2
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