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"बोलनिहारे सों करै बलि बिनयकी झाईं"
विनय पत्रिका में एक पद है उसमें गोसाईं जी विनय करते हुए भी वेदांत पढ़ा गये एक पंक्ति में। "बोलनिहारे सों करै बलि बिनयकी झाईं" चिदाभास में ही कर्तृत्व भोक्तृत्व होता है। तो कह रहे हैं वास्तविक बोलने वाले (वाक्पति) आत्मा/भगवान से उसकी परछाई क्या विनय करेगी।15
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